BharatMereSaath Blog शिव जी ने क्यों धारण किया अर्धनारीश्वर का स्वरुप

शिव जी ने क्यों धारण किया अर्धनारीश्वर का स्वरुप



प्रश्न :- शिव जी का अर्धनारीश्वर अवतार क्या है ?
उत्तर:- अर्धनारीश्वर के अवतार के बारे में बताया गया है कि सनातन धर्म में शिव परिवार ही एक ऐसा परिवार है जो सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। जो आज के सम्पूर्ण मानव जीवन में गृहस्थी का आधार है। और जो गृहस्थी में नर नारी है वो शिव शक्ति के स्वरुप है। नारी शक्ति को महत्त्व देने के लिए भगवान शिव ही एक अधिष्ठता देव हैं। और शिव ने यह कहा है कि गृहस्थी का आधार नर और नारी दोनों मिलके समान होते हैं। अर्ध अंग अर्धंगनी क्यूंकि पत्नी अर्धागिनी के लिए पुरुष का आधा अंग कहलाती हैं। इसीलिए शिव ने अपनी अर्धांगिनी को अपने में सम्माहित करने के लिए अर्धनारीश्वर का स्वरुप धारण किया कि मैं ही आधा शिव हूँ मैं ही शक्ति हूँ।
प्रश्न :- जिनका विवाह हो गया हैं तो क्या उनको अर्धनारीश्वर कि पूजा करनी चाहिए ?
उत्तर :- अर्धनारीश्वर की पूजा सभी गृहस्थियों को , सभी ब्रह्मचारियों को करनी चाहिए। क्यूंकि शिव जी ही एकमात्र ऐसे अधिष्ठाता है। जिनमे कोई जाती भेद नहीं है। इसमें किसी भी प्रकार का कोई जाति- धर्म नहीं है।लेकिन इनको यदि कोई मानता है। तो उनका भी उसमे कलयाण होता है। और अर्धनारीश्वर का अर्थ यही है की गृहस्थी में दोनों का महत्त्व है। इसीलिए जो भी है शिव के अनुसार है इसीलिए सब कर सकते हैं। किसी के लिए अलग से कोई विधान नहीं है।।
प्रश्न :- अर्धनारीश्वर स्वरुप को घर में या मंदिर में स्थापित करने के लिए प्राण प्रतिष्ठता किस पद्धति से करना चाहिए ?
उत्तर :- अर्धनारीश्वर ही नहीं सभी देवी देवताओं की मूर्तियों की घर में कभी प्राण प्रतिष्ठता नहीं होती है। घर में तो सिर्फ आपकी एक सवा अंगुल का प्रमाण होता है मूर्ति रखने का। उससे अधिक मंदिरों में ही होता है।
मंदिरों में प्रतिष्ठान का एक विधान होता है। जो प्रतिमा को प्राण प्रतिष्ठत कराया जाता है। प्राणप्रतिष्ठा करने के लिए जरूरी होता है वास-
वास में सबसे पहले होता है जलाधिवास जो सवा दिन का होता है इसके बाद होता है अन्नादिवस — जो अन्न के अंदर पूरी तरह से ठक कर रखा जाता है। फिर होता है गृतिवास जो घी में भगवान की प्रतिमा को डूबा कर रखा जाता था वो भी गाय के शुद्ध घी में लेकिन आज के समय में फलादिवास कर दिया गया है। ये सभी सवा सवा दिन के होते हैं। इसके बाद सवा दिन का होता है सांयदिवास यानि की जो आदमी नहायेगा खायेगा पियेगा और फलादि करेगा तो फिर वो सोएं गा भी।
ये सभी वास कराने के बाद उस प्रतिमा में शक्ति आती है। फिर उसको मंत्रोचारण से प्राण प्रतिष्ठता की जाती है पांचवे दिन।
इसके बाद प्रतिमा से मूर्ति में बदल में आजाते हैं भगवान।
 इसी प्रकार से मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठता की जाती है है मूर्तियों की।।

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