BharatMereSaath Blog दक्षेश्वर महादेव मंदिर कनखल हरिद्वार का इतिहास

दक्षेश्वर महादेव मंदिर कनखल हरिद्वार का इतिहास



प्रश्न:- दक्षेश्वर महादेव मंदिर कनखल हरिद्वार का इतिहास क्या है ?
उत्तर:- आज हम बात करेंगे देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे स्थान की जंहा भोले नाथ स्वंय चार माह हिमालय पर्वत छोड़ कर इस भूमि पर समय बिताते हैं। जी हाँ भगवान विष्णु जी जब वो चार माह के लिए निन्द्रावस्था ( सैयां सईया ) में जाते हैं। तब वो आपने पूरा कार्यभार भगवान भोलेनाथ के हाँथ सौंप देते हैं। और ये पूरी सृष्टि चार माह तक शिव जी के हाँथ में रहती है। ऐसा माना जाता है की पुराणानुसार ब्रह्मा जी के पुत्र राजा दक्ष की एक मायापुरी नगरी थी जिसे अब कनखल कहा जाता है। इस मायापुरी में माता सती का जन्म हुआ था और माता सही का विवाह भी मायापुरी से भगवान शिव के साथ हुआ था। लेकिन भगवान शिव राजा दक्ष के जमाता तो बन गये किन्तु राजा दक्ष ने शिव जी को आदर सत्कार नहीं दिया।
एक बार की बात है कि राजा दक्ष अपने राज्य कनखल में हवन करा रहे थे उसमे सभी को निमंत्रण भेजा गया लेकिन शिव जी को नहीं बुलाया गया। लेकिन बिना निमंत्रण मिले ही सती जी शिव जी से हट करके अपने मायके आ गयी किन्तु राजा दक्ष ने माता सती से शिव जी का घोर अपमान किया ये अपमान माता सती नहीं सह सकी और उसी हवन कुंड में कूद कर अपने प्राणों कि आहुति देदी। जब ये बात भगवान शिव को पता लगी कि सती ने अपने प्राणों कि आहुति देदी तो वो क्रोध में आकर शिव जी ने अपनी शक्ति से वीरभद्र को उत्पन्न करते हैं और उससे कहते हैं कि वो वह गणों के साथ जाकर यज्ञ का विध्वंस करे और राजा दक्ष का शीश को काट दें और वीर भद्र कनखल आकर शिव जी के आदेश का पालन करता है और वो राजा दक्ष का शिस काट देता है और उस हवन में जो ऋषि मुनि बैठे थे उन्हें भी दंड देता है।
और शिव जी माता सती के शोक में सर्वश भूमि में तांडव करने लगते हैं। ये देखकर ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने उनके क्रोध को शांत कराया और भगवान शिव जी को मायापुरी लेकर आये। तब राजादक्ष ने माफ़ी मांगी तब शिव जी ‘दक्ष’ का सिर कि जगह बकरे का सिर से जोड़ दिया गया। और आशीर्वाद दिया कि इस स्थान पर नाम दक्ष का होगा और महिमा शिव कि रहे गी। तब से इस स्थान का नाम दक्षेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। ये हरिद्वार कनखल में गंगा तट पर स्थित है ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव अपनी ससुराल मायापुरी कनखल प्रत्येक वर्ष चार माह के लिए आते हैं। और दक्षेश्वर मंदिर में अपना स्थान बनाते है।
और सावन में लोग जलाभिषेक के लिए दूर दूर से आते हैं और दर्शन करके अपने घर को वापस होते है। अधिक जानकारी के लिए निचे दिए गये लिंक को क्लिक करे और पूरा कनखल हरिद्वार का इतिहास जाने
माता सती का मायका और शिव बाबा के ससुराल का सुन्दर दर्शय
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