
नमस्कार भारत मेरे साथ चैनल में आप सभी दर्शकों का स्वागत है। बात करते हैं कश्मीर श्रीनगर के ऐसे स्थान की जहाँ आज भी भव्य तरह से मेला लगता है। प्रत्येक वर्ष लेकिन उस स्थान की और कश्मीर की सनातन संस्कृति की कोई अधिक बात नहीं करता है। श्रीनगर से कुछ दुरी पर वसा है ये मंदिर कश्मीर की संस्कृति और उसकी धरोहर को दर्शाता है ये मंदिर श्री नगर से तुलमुल गंधारबल स्थित है। इस मंदिर का नाम है माता खीर भवानी यहाँ पर आज भी पूरे भारत देश से लोग दर्शन के लिए आते है। सबसे ज्यादा इस मंदिर में कश्मीरी ब्राह्मण जो श्री नगर कश्मीर से बाहर रहते हैं। वो भी आते हैं क्योंकि ये कुलदेवी इस समाज की हैं। तो इस स्थान पर भारत मेरे साथ चैनल दिल्ली से सुश्री सुरभि सप्रू जी आषाढ़ शुक्ल पक्ष { ३ जून } को माता खीर भवानी का उत्सव को मानाने आयी हैं। इस मेले में सुश्री सुरभि सप्रू जी ने यहाँ के जाने माने शख्सियत से भेटं की हैं जो वो कश्मीर की संस्कृति, तंत्र विज्ञानं और शिव शक्ति पर बात करेंगे। जिनका नाम हैं रोहित रैना जो कश्मीर की संस्कृति धर्म धरोहर विलुप्त होरही हैं उस पर बात करेंगे।।
प्रश्न:- अभिनव गुप्त का शैव सिद्धांत और शिव फिलॉसफी क्या है ?
उत्तर:- रोहित रैना जी बताते हैं की जिसे हम शैविज्म कहते हैं या कश्मीर शैविज्म इस कश्मीर शैविज्म का नाम एक पद्धति को है उसको त्रिक
दर्शन भी कहते हैं। ये एक अभ्यास है जिस पर तीन शक्तियों में काम होता है। जिसे पराशक्ति, परा अपरा शक्ति, और अपरा शक्ति। तो शक्ति और शिव को कश्मीर शैविज्म में एक ही मानते हैं। शिव से ही शक्ति उत्पन्न होती है। ये जो पूरी व्यवस्था है कश्मीर की शिव और शक्ति की ये पद्धति के अनुसार रिवाल्व होती है। इसमें एक महत्वपूर्ण पद्धति भी है जिसे भैरव और भैरवी पद्धति कहते हैं। ये जो कश्मीर शैविज्म है इसमें कोई भी चार वर्णो में अभ्यास कर सकता है। इस पद्धति को अभिनव गुप्त जी ने उसको एक धागे में पिरोया है। कि हम इस दुनिया को सृष्टि का उत्पन्न से लेकर और अभी तक उस सबको हम शिव की नजर से देखते हैं। तो जैसे वो कहते हैं न की कण कण में शिव है जो ये कश्मीर शैविज्म यही कहता है कि जिसमे प्राण है या जिसमे प्राण नहीं है या जिसमे प्राण है पर वो दिखते नहीं या महसूस नहीं होता है इन सब में शिव ही हैं। जिसे इस बात का बोध हो जाता है वो भैरव या भैरवी कहलाता है।
प्रश्न :- क्या तंत्र विज्ञानं कश्मीर शैविज्म का ही भाग है ?
उत्तर:- इस तंत्र विज्ञानं क समझाना होगा कि जिसे हम आध्यात्मिकता कहते है। ये तीन प्रकार के होते हैं जिन्हे यंत्र, तंत्र और मन्त्र
यंत्र का मतलब होता है ये जैमेट्रिकल फिगर्स जो एनर्जी सोर्स एक्ट करती है वो हमारे ध्यान केंद्रित करने के लिए। जैसे हम शिवरात्रि की पूजा करते हैं वो शिवरात्रि की पूजा असल में भैरव और भैरवी की पूजा है इसमें शिवरात्रि के दिन बटुकनाथ भैरव की भी पूजा होती है। और साथ में राम भैरव की पूजा होती है। लेकिन उनके साथ में एक आकृति बनाते हैं। वो आकृति यंत्र है इस यंत्र का मतलब है इससे हम देवताओं को आवाहन करते हैं। दूसरा है मन्त्र जैसे हम सबको पता है मन्त्र जप करना या जिसे हम मन्त्र उच्चारण या अपने वेद पुराण के मन्त्र उच्चारण करना एक यह पद्धति है। तीसरी है तंत्र ये जो है न वो आपका शरीर है। उसके प्रयोग करके आप कैसे आध्यात्मिक बोध कर सकते हैं। शरीर का जब आप प्रयोग करते हैं इसमें बहुत सरे विचार आते हैं। क्योंकि शिव जो है वो तीन शक्तियों में समाहित हैं पराशक्ति, अपराशक्ति, प्रापराशक्ति और इसमें गुण भी तीन ही आते हैं सतोगुण तमोगुण रजोगुण तो शिव जी तो हर गुण में समाहित हैं। तो जब हम तंत्र से अभ्यास करते हैं शिव की पूजा करते हैं। उसमे जो आप कहते हैं उसमे ब्लैक मैजिक या कला जादू भी कहा जाता है। और तीन शक्तियाँ भी आ जाती हैं। ब्लैक मैजिक जो है वो तंत्र विज्ञानं का एक भाग है तंत्र विज्ञानं का पहले ही अध्ध्याय का अभ्यास स्वास साधने की क्रिया की होती है क्योंकि हमारी स्वास में ही शिव और शक्ति छुपे हुए हैं। जब आप स्वास पर अभ्यास करते हैं तब आपका ध्यान चक्र एक्टिवेट होता है जिसे हम सप्त चक्र कहते हैं इसी सप्त चक्र में पराशक्ति, अपराशक्ति, परा अपरा शक्ति।।
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https://youtu.be/zmQYxzKSjIc?si=sW2Di1fpYTAVqYcX
