प्रश्न:- ध्रुपद क्या है ? और किस तरह से इसको सिखाया जाता है ?
उत्तर:- ध्रुपद गायकी जो है वो बहुत ही प्राचीन विधा है। लेकिन ख्याल से पहले ध्रुपद का प्रचलन था और यह बहुत ही प्राचीन संगीत है और यह आप जब नाम सुनते हैं। तानसेन जी, बैजू बाबरा, स्वामी हरिदास जी का उस समय से ध्रुपद हमारा चला आ रहा है।
तो ध्रुपद में जैसे हम लोगों को पता है कि स्वामी हरिदास जी इसके गुरु हैं। उनके ऊपर हमे नहीं पता है। तो वहीँ से शुरू हुआ ध्रुपद या हो सकता है पहले से भी आ रहा हो लेकिन उनका नाम सबसे ज़्यादा हम लोग सब जानते हैं।। तो वहीँ से जब ध्रुपद आया और ध्रुपद का प्रचार प्रसार हुआ तानसेन जी भी ध्रुपद गाते थे। तो बाद में ये चार वाणियां हो गयी।
१- गौरहर वाणी , २- खण्डार वाणी, ३- डागुर वाणी और ४- नौहर वाणी।
तो हम लोग डागुर वाणी से हैं। और बाद में चलते चलते दो वाणी विलुप्त हो गई। गौरहर और डागुर वाणी ही प्रचलन में अभी आपको सुनने को मिलेगी।
तो इन दोनों वाणी में जैसे गौरहर वाणी है। उसमे थोड़ा हम लोग लय कि ज़्यादा प्रधानता रखते हैं। और डागुर वाणी में सुर का विशेष ध्यान दिया जाता है और आलापचारी राग विस्तार पर ज़्यादा विशेष ध्यान दिया जाता है।।
प्रश्न :- ध्रुपद में सबसे ज़्यादा क्या गाया जाता है ?
उत्तर:- ध्रुपद में जो पद होते हैं। ध्रुपद का मतलब है। ध्रुव और पद। मतलब जो स्थिर हो, जो अडिग हो जिसको आप बदल न सके उसे ध्रुपद कहा जाता है। और ध्रुपद के जो पद होते हैं। वो पूरा भक्ति संगीत ही है। क्यूंकि ये पहले मंदिरों में ही गाया जाता था तो इसके आप जब पद देखें गें। तो वो ये भगवान कृष्ण, शिव या शक्ति के ऊपर होगा। मतलब वो सारे पद उसमे कहीं आपको श्रृंगार नहीं दिखे गें जिसमे प्रेमी प्रेमिका वाले श्रृंगार होते हैं। आपको ये ईश्वर से कॉन्टेक्ट करते हैं। सारे पद। ऐसा लगता है कि ये पूरा भक्ति संगीत है ध्रुपद। बाद में ये मंच पर आ गया लेकिन पहले ये तो मंदिरों में ही गाया जाता था।
आप ऐसा समझ सकतें है कि ऐसा ये भजन है जो पूरा शास्त्र से बंधा हुआ है।।
जैसे एक बंदिश है। —
नमो नमो महावीर ,
नाथ नंदन, सिद्धार्थ नंदन, दुख भंजन, सागर सनजन,
नमो नमो महावीर।।
प्रश्न:- लेखन में कैसे बंदिश लिखी जाती है और इसकी लिखने कि टेक्निक क्या है ?
उत्तर:- जैसे कि जो बंदिश है न वो आप देंखे गें कि सारे बंदिश प्राचीन बंदिश है। जैसे थोड़ा सा इसमें गुंडेच बंधू ने काम किया था कि उन्होंने थोड़े से और भी जो कवि हैं उनके पद गाया। लेकिन उसका कुछ लोगों ने विरोध भी किया और कुछ लोगों को अच्छा भी लगा जबकि उनका ये था कि उन्होंने ध्रुपद से जन जन को जोड़ा है।।
और जैसे हम भी सीखते हैं। तो सबसे पहले वो हमे हारमोनियम पर सीखना शुरू करते हैं। अब एक प्रश्न ये है सबसे कि क्या हारमोनियम में श्रुति है। बता दें कि हारमोनिया में श्रुति नहीं है। हमारा संगीत पूरा श्रुतियों पर है। आप श्रुति से हट कर नहीं गा सकते। हमारा जो सुर है तो एक सुर दूसरे सुर पर जाता है तो हम श्रुति से होते हुए जाते हैं।
तो वो चीज तो सिर्फ तार यंत्र पर हो सकता है। वो तो जो बटन वाले जो यंत्र है उस पर नहीं होगा। और हारमोनियम हमारा इंस्टूमेंट है भी नहीं।
हमारे जो विद्वान लोग हुए हैं। उन्होंने 22 श्रुति माना है और 7 स्वर हैं। सर, ऋषभ, गांधार , मध्यम, पंचम, देवत, निषाद !
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