BharatMereSaath Blog बदलते काव्य मंच और आज का साहित्य। साहित्यकार मनोज कामदेव से विशेष बातचीत।

बदलते काव्य मंच और आज का साहित्य। साहित्यकार मनोज कामदेव से विशेष बातचीत।



प्रश्न:- मनोज कामदेव ने हिंदी साहित्य में सफर कैसे शुरू किया ?
उत्तर:- मनोज कामदेव का जन्म मनान जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड में हुआ है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा गांव से ही हुयी है। ये जब अपनी उत्तर माध्यमिक की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। तभी इन्होने एक कविता पढ़ी ” सतपुड़ा के घने जंगल ” ये कविता उनके दिल को भा गई। कि ये जब अपने अल्मोड़ा के जंगलो में जाते तो इस कविता को घुनघुनाया करते थे और इस कविता से प्रेरित होकर इन्होने अपनी पहली कविता ”अल्मोड़ा के घने जंगल” लिखी।।
इसके बाद मनोज अपनी डिग्री की पढ़ायी के साथ साथ कविता भी लिखते थे और उस कविता को लिखने के बाद अपने दोस्तों और अध्यापकों को सुनाया करते थे तो कुछ लोग अच्छा कहते तो कुछ मज़ाक में ले लेते थे। फिर एक समय ऐसा आया की मनोज को कॉलेज की तरफ से कविता पढ़ने के लिए मंच पर बुलाया गया।। और कविता की सराहना भी खूब हुयी। लेकिन जो बड़े कवि थे तो उन्होंने मनोज की गलतियां भी बतायी।। तो इन्होने कवियों की बात को सीरियस लेकर उन बड़े कवियों के समर्थ में आकर सीखना शुरू किय। और अब मनोज कामदेव कवितों के साथ दोहे भी लिखने लगे थे। फिर इन्होने अपने जीवन को हिंदी साहित्य में ही समर्पण कर दिया।
मनोज कामदेव की वीर शहीदों के लिए कुछ पंक्ति ———-
” वीर शहीदों की जहाँ, पड़े चरण की धूल।
कहती अंतर आत्मा, बिछ जा बन कर फूल।।

प्रश्न:- कविता कहानियां लिखने से पहले क्या जरूरी होता है? कल्पना या अनुभव !
उत्तर:- जब कोई लेखक या कविकार किसी कविता या कहानियों को लिखते समय अपनी कल्पना को समाज में हो रही गतिविधियों को अपने लेखनी में नहीं रखे गा तो उसे अधिक महत्त्व नहीं मिले गा। जैसे कि मनोज एक दोहा लिखते हैं। ” एक लिफाफा धूप” इस दोहे का ये मतलब है कि खिड़की से धूप अंदर आरही है। उस पर इन्होने अपनी नई कल्पना करके लिखा है कि —–
” सूरज ने पति लिखी, देख रात का रूप।
खिड़की खुलते ही गिरी, एक लिफाफा धूप।।
मनोज कामदेव कहते हैं कि साहित्य में हर दिन हमारे लिए एक नया दिन है।। और साहित्यकार लेखककार या कवि को लिखने के लिए कल्पना के साथ साथ अनुभव बहोत ही महत्त्वपूर्ण है।।

प्रश्न:- पहले और अब के कवि मंचो के कवि सम्मलेन कि स्थिति क्या है ?
उत्तर:- पहले के कवि सम्मलेन में ये कवि होते थे कुंवर बैचेन साहब , लक्ष्मी शंक्कर बाजपेयी , गोपालदास ‘नीरज’ सोम ठाकुर इतय्दी कविकारों के समय कवितायें या कवि सम्मलेन बड़े अदब और शिष्टाचार्य से होते थे। क्यूंकि पुराने कवियों के पास शब्दों का बहोत बड़ा भंडार होता था।
कहतें है कि ” कवि वही हो सकता है जिसके पास शब्दों का भंडार हो ” जो अपनी कविता से और नये नये शब्दों से समाज को लुभा सके।।
आजकल के कवियों के पास शायद समय कि कमी है या फिर इनके पास कविता कहने का अर्थ नहीं या शब्दों कि कमी है। कुछ न कुछ आज के कवियों के पास कमी है जो समाज को वो चीज नहीं बता पति है जो पुराने कवि अपने शब्दों से उनको लुभा लेते थे।
कहते हैं कि कवि एक जादूगर होता है शब्दों का।।

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