BharatMereSaath Blog बनारस को रस और बांसुरी के स्वर पर विशेष बातचीत

बनारस को रस और बांसुरी के स्वर पर विशेष बातचीत



नमस्कार भारत मेरे साथ चैनल में आप सभी दर्शकों को स्वागत है आज एक ऐसे वाद्य यंत्र पर बात करेंगे जो कई हजारों साल पुराना है। वो बहुत ही साधारण तरीके से बनाया जाता है लेकिन उसकी धुन सुन कर लोग उस धुन में झूमने लगते है और उसी की एक धुन ऐसे भी होती है जो ध्यान योग करने के काम आती है तो आज तो बात कर रहे हैं वो है बांस की बनी हुयी बाँसुरी की जो भगवान कृष्ण के हाथ में थी और आज भी है। तो इसके विषय में और इसके घराने की बात करेंगे डॉ अतुल शंकर जी से जो बनारस के रहने वाले हैं।
डॉ अतुल शंकर बनारस के एक प्रसिद्ध शहनाई घराने से संबंध रखते हैं। अतुल ने बांसुरी बजाने की शिक्षा अपने दादा (नाना गुरु) स्व. पं. बोला नाथ प्रसन्ना से प्राप्त की, जो बनारस घराने के प्रसिद्ध बांसुरी वादक थे। उन्होंने अपने दादा गुरु स्व. पं. राम खेलावन जी और दादा गुरु पं. श्यामल जी, जो बनारस घराने के प्रसिद्ध शहनाई वादक हैं, से प्रशिक्षण भी लिया। अब वह अपने पिता गुरु शहनाई मास्टरो पं. राम शंकर जी, जो बनारस घराने के प्रसिद्ध शहनाई वादक हैं, के साथ अपना संपूर्ण प्रशिक्षण ले रहे हैं। उन्होंने अपनी माता श्रीमती रीता शंकर से वोकल शैली का प्रशिक्षण भी लिया और अब अपने चाचा पं. अजय प्रसन्ना, बनारस घराने के बांसुरी वादक, से मार्गदर्शन ले रहे हैं। साथ ही वह अपने चाचा पं. चंद्रकांत प्रसाद, बनारस घराने के वादक, और अपने चाचा श्री दिलीप शंकर, संतूर व बांसुरी वादक, से भी मार्गदर्शन ले रहे हैं। उन्होंने 2015 में अपने गुरु डॉ. प्रह्लाद न, बांसुरी वादक, के अन्वेषण में पी.एच.डी. पूरी की। उन्होंने भारत के कई स्थानों पर प्रस्तुतियाँ दी हैं और कई पुरस्कार जीते हैं।उन्होंने भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित दक्षिण अमेरिका में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सामने तीन बार प्रदर्शन किया।
प्रश्न: – बनारस घराने और बांसुरी को रिश्ता क्या है ?
उत्तर: –डॉ अतुल शंकर जी बनारस घराने से आते है और इनके पिता जी दादा जी शहनाई घराने से थे और इनके परिवार में सभी लोग शहनाई ही बजाते थे और इनके दादा जी पंडित नन्दलाल जी देश के बहुत ही जाने मने प्रसिद्द शहनाई वादक थे जिनका अभी भी संगीत के क्षेत्र में और संगीत की किताबों में जिक्र होता है। और इनके पिता जी पंडित रमाशंकर जी वो भी बहुत ही विख्यात शहनाई वादक थे देश के और इसी तरह से पूरे घर में संगीत को माहौल था और कर भी रहे थे सभी लोग। किन्तु मेरी माँ ग्रहणी थी लेकिन संगीत को बहुत ही अच्छा ज्ञान था और मैंने अपनी माँ से ही बचपन से संगीत सीखता रहा हूँ। और नाना जी पंडित भोला नाथ प्रसन्ना जी जो देश नहीं पूरे विश्व के बहुत ही बड़े बांसुरी वादक और बहुत बड़े गुरु रहे हैं जिन्होंने पंडित हरी प्रसाद चौरसिया जी को बचपन से सुर सिखाया है और उन्ही को सुन कर पंडित हरी प्रसाद चौरसिया जी बांसुरी चालू किया है। तो मेरे घर में शहनाई और ननिहाल की तरफ शहनाई छोड़ कर बांसुरी लेके आये और मैंने भी अपने ननिहाल में नाना जी से बांसुरी सीखी है।
प्रश्न: -बांसुरी को काम ध्यान योग में क्या है ?
उत्तर: –बांसुरी को जो है वो साँस को अभ्यास करने के लिए होता है। जो फेफड़ो को मजबूत करते हैं। क्योंकि बांसुरी के स्वर को साधने के लिए अभ्यास करना बहुत ही जरूरी है क्योकि बड़ी बांसुरी में स्वर साधने के लिए ताकत ज्यादा लगानी होती है छोटी में भी लगानी पड़ती है पर ज्यादा नहीं यदि आप लगातार अभ्यास करते हैं तो सब कुछ संभव हो जाता है बांसुरी बजाने के लिए जितना आप अभ्यास करते हैं उतने ही आपके फेफड़े मजबूत होंगे।
और योग के लिए मैं कहूं की सबसे पहले अगर कोई ध्यान लगता तो उसे सबसे शांतिपूर्ण स्थान देखता हैं जहाँ उसे किसी प्रकार की अशांति न हो और फिर योग करने के लिए ध्यान एकत्रति करने के लिए किसी न किसी धुन या स्वर के आवश्कता होती है। और उसके लिए बांसुरी की धुन जरूरी होती है उसने दूसरी किसी और धुन की जरूरत नहीं होती है सिर्फ और सिर्फ बांसुरी से अलाप की दे जाती है। वो भी रिकरेड़ होना चाहिए।

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