साहित्य धारा सुधाकर पाठक
बच्चों ने पढ़ना और बोलना छोड़ दिया हिंदी और संस्कृत भाषा
नमस्कार भारत मेरे साथ चैनल में आप सभी दृश्कों का स्वागत है।। आज बात करेंगे साहित्य धारा के हिंदी पर सुधाकर पाठक जी से…….
आपके मन में एक सवाल आरहा होगा की साहित्य धारा पर क्या बातें होगी क्यूंकि आज तो वो विलुप्त की ओर आ गयी है। लेकिन आपको बतादें की आज के समय में जो हम अपनी मातृ भाषा अपनी संस्कृति को छोड़ कर दूसरे देश की भाषा ओर बोली को पढ़ना ओर सीखना रहे हैं तो हम अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं। सबसे पहले अपनी भाषा अपनी बोली अपनी संस्कृति को विधिपूर्वक सीख लें पढ़ ले। जिससे अपने लोगों से अपनी बोली भाषा संस्कृति पर बात कर सकें।।
आज का जो हमारा शीर्षक है।।
” पीठ पर लादकर रखा है अपनी बोली भाषाओं को “”
प्रश्न:- सुधाकर पाठक का साहित्य और हिंदुस्तानी भाषा अकादमी का सफर कैसे शुरू किया ?
उत्तर:- साहित्य की जो मेरी यात्रा है। वैसे तो सब की यात्रा साहित्य से ही शुरू होती है लेकिन साहित्य की यात्रा के साथ साथ मुझे बहुत जल्दी ये समझ में आगया कि साहित्य की यात्रा के साथ अब ज्यादा जरूरी है भाषाओं की यात्रा ……….।
भाषाओं का संरक्षण ही सुधाकर जी की यात्रा है। भाषाओं की संरक्षण के लिए सर्वधन के लिए उनके आगे बढ़ाने के लिए ही कार्य कर रहा हूँ। इसी लिए मेरा कार्य ये है कि भाषाओं को कैसे बचाना है। क्यूंकि भाषा बचे गी तो संस्कृति बचेगी साहित्य बचेगा।।
तो भाषाओं को बचाने के लिए कार्य है जो नये पाठक वर्ग तैयार करना है। लोगों को भाषाओं से जोड़ना है। देश कि जो 22 संवैधानिक भाषाएँ हैं उनके साथ लोगों को जोड़ना है इस तरह का प्रयास सुधाकर पाठक हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के माध्यम से कर रहे हैं। हमारे सविंधान में 22 भाषा हैं जिसे सरकार संरक्षित कर रही है लेकिन मई हमेशा यही कहता हूँ कि सरकार द्वारा संरक्षित होने के बाद इस बात कि कोई जरूरी नहीं है कि भाषा संरक्षित हो रही है। क्यूंकि कश्मीरी भाषा, डोंगरी भाषा ,संथाली भाषा यहाँ तक कि वेद की भाषा देवों की भाषा संस्कृत भी संरक्षित नहीं है तो ऐसे नहीं है की वो सविंधान की आठंवी अनुसूची में आगयी है तो वो संरक्षित हो गई है।
भाषाओं को संरक्षित करने के लिए उनको प्रयोग में लाना आवश्यक है। जब तक भाषा को प्रयोग में नहीं लाया जायेगा तब तक भाषाएँ नहीं बचेगी और एक पीढ़ी दो पीढ़ी के बाद वो धीरे धीरे समाप्ति की ओर चली जाती है।।
प्रश्न:- हिंदुस्तानी भाषा अकादमी भाषाओं को बचाने का प्रयास किस तरह स एकर रही है ?
उत्तर:- देखेंगे कि सरकार की तरफ से भाषाओं को संरक्षित तो कर दिया गया है ओर कुछ अकादमियां भी बना दी गई लेकिन ये अकादमियां भाषा पर कोई काम नहीं कर रही है। कई प्रदेश कि जो संस्थाएँ है जो हिंदी के नाम पर जुडी है। जैसे कि साहित्य अकादमी तो साहित्य का काम देख रही है तो वो साहित्य पर काम तो कर रही है लेकिन भाषाएँ कैसे बचे नए बच्चे नई पीढ़ी उस भाषाओं से कैसे जुड़े ? तो वो साहित्य अकादमी नहीं जोड़ रही है। वो तो जो साहित्य छप रहा है उसको आगे लेके चल रहे हैं तो ये भाषा कैसे बचे गी। तो सुधाकर जी कहते हैं कि ……
”’पत्तों पे पानी डालने से नहीं, जड़ों को सींचने से बचेगी हमारी भाषाएँ “”
हमें जड़ों को सींचना पड़ेगा तभी पल्लवित ओर पुष्पित होंगे वृक्ष।। “”
जड़ों को सींचने का काम जो है वो हमारे विधालय स्टार के बच्चे हैं तो हम लोगों {हिंदुस्तानी भाषा अकादमी } विधालय स्तर पर कार्य कर रहे हैं पिछले आठ वर्षों से भारतीय भाषाओं के अंदर ऐसे बच्चे जिन्होंने 90% से अधिक अंक लेकर आते हैं तो उस विधालय के हिंदी के शिक्षक और उन बच्चों को अलग अलग जगह पर सम्मानित करते हैं जिससे और भी बच्चों का हिंदी की ओर ध्यान आकर्षित हो।। और हिंदी भाषा को वो आगे बढ़ाएं।। इस वर्ष हिंदुस्तानी भाषा अकादमी ने 9000 बच्चों को सम्मानित किया है।
प्रश्न:- संस्कृत से बच्चों का आकर्षण क्यों नहीं और उसे क्यों नहीं पढ़ना चाहते हैं ?
उत्तर:- सुधाकर पाठक जी ने बहुत ही विचार करने वाली बात कही है कि भाषाओं का सीधा सम्बन्ध हमरे पेट से जुड़ा हुआ है। हमने भाषाओं को पीठ पर लाद लिया है क्यूंकि जब रोजगार से भाषाएँ जुडिउ हैं तो भाषाएँ बचती हैं और भाषाओं का संरक्षण सरकार के द्वारा होता है। यदि हम हिंदी और संस्कृत की बात करते हैं तो इन भाषाओं में कितनी प्रतिशत रोजगार है।। कोई बच्चा इन भाषाओं को क्यों पढ़े इनमे कोई रोजगार ही जब नहीं मिल रहा है। सरकार के द्वारा कितने बच्चों को समर्थन किया जा रहा है यह बहुत आवश्यक होता है क्यूंकि भाषाएँ जो हैं वो बच नहीं रही है वो इसीलिए की उनको रोजगार से नहीं जोड़ा गया है सरकार की 2020 की नई शिक्षा निति जो आयी है उसके अंदर इस तरह कि व्यवस्था कि गई है ……..।
होता क्या है कि आप संस्कृत आपने छठीं कक्षा में पढ़ी और नवीं दसवीं में आकर छोड़ दिया क्यूंकि बच्चे इस लिए नहीं पढ़ते हैं ?उसमे इनको रोजगार नहीं मिलता है। इसी लिए बच्चे अंग्रेजी में और अन्य भाषाओं में ध्यान देते हैं जिससे उनको रोजगार मिल सके।।
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